Turnip Farming : शलजम की खेती समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। शलजम की खेती भारत के बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और तामिलनाडू आदि राज्यों में की जाती है। इसको जड़ वाली खेती के रूप में जाना जाता है। इसमें विटामिन और खनिज का स्रोत अच्छा होता है। शलजम की खेती कैसे करें?
शलजम का खेत कैसे तैयार करें
किसान भाइयों को बता दें कि शलजम की खेती के लिए जिस जमीन का आपने चयन किया है उसे अब पूरी तरह से तैयार करना होगा। शलजम की खेती में भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है, इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दें। इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे। जुते हुए खेत की मिट्टी में धूप लगने के लिए खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें।
इसके बाद खेत में 250 से 300 क्विंटल गोबर की पुरानी खाद या वर्मी कंपोस्ट की मात्रा दें। इसके बाद अच्छी तरह से जुताइ कर मिट्टी में पानी लगा कर वापस जुताई करें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर दें। रासायनिक उर्वरक में 50 किलोग्राम फास्फोरस,100 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 50 किलोग्राम पोटाश की मात्रा को खेत मे आखिरी जुताई के समय दें।
शलजम की उन्नत किस्म
लजम की कुछ उन्नत किस्मों इस प्रकार है –
- लाल शलजम
- सफेद शलजम
- परपल टोप शलजम
- पूसा स्वेती शलजम
- पूसा चंद्रिका शलजम
- पूसा स्वर्णिमा शलजम
- स्नोवाल शलजम
बुवाई का समय
देसी किस्मों की बुवाई का उचित समय अगस्त-सितम्बर, जबकि यूरोपी किस्मों का अक्तूबर- नवंबर में होता हैं।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए 2-3 किलो बीजों की जरूरत होती है।
शलजम की सिंचाई
शलगम को तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के बाद पहली सिंचाई करें, यह अच्छे अंकुरण में मदद करती है। गर्मियों में मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार, बाकी की सिंचाइयां 6-7 दिनों के अंतराल पर करें। सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर करें। शलगम को 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है| अनावश्यक सिंचाई ना करें। इससे जड़ों का आकार विकृत होगा और इस पर बाल उग जाते है।
शलजम की खुदाई
शलजम की खुदाई वैरायटी आधार पर की जाती है. वैसे शलजम खुदाई के लिए 45 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है. कंद का व्यास 5.0 से 7.5 सेमी होने पर शलजम की खुदाई कर सकते है. खुदाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए।
शलजम खाने के फायदे
- शलजम से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है,
- कैंसर और ब्लड प्रैशर पर कंट्रोल रहता है।
- हृदय रोगों में लाभकारी
- शलजम खाने से वजन घट सकता है
- यह फेंफड़ों को मजबूत बनाती है।
- आंतो के लिए लाभदायक होती है।
- लीवर और किडनी में फायदेमंद
- इसके सेवन करने मधुमेह रोग नहीं होता।
- शलजम से बालो की मजबूती बढ़ती है।
बीमारियां और रोकथाम
जड़ गलन: इस बीमारी के बचाव के लिए, बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। बिजाई के बाद 7 और 15 दिन नए पौधों के आस पास की मिट्टी में कप्तान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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