Agriculture
हल्दी की खेती कैसे करें । हम सब जानते हैं कि हल्दी एक बहुत बड़ी आयुर्वेदिक तत्व है।इसका का वानस्पतिक नाम कुर्कमा लांगा हैं. इसकी उत्पत्ति दक्षिण पूर्व एशिया में हुई हैं.
हल्दी का उपयोग प्राचीनकाल से विभिन्न रूपों में किया जाता आ रहा हैं, क्योंकि इसमें रंग महक एवं औषधीय गुण पाये जाते हैं।
हल्दी में जैव संरक्षण एवं जैव विनाश दोनों ही गुण विद्यमान हैं, क्योंकि यह तंतुओं की सुरक्षा एवं जीवाणु (वैक्टीरिया) को मारता है. इसका उपयोग औषधीय रूप में होने के साथ-साथ समाज में सभी शुभकार्यों में इसका उपयोग बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है.
वर्तमान समय में प्रसाधन के सर्वोत्तम उत्पाद हल्दी से ही बनाये जा रहे हैं. हल्दी में कुर्कमिन पाया जाता हैं तथा इससे एलियोरोजिन भी निकाला जाता हैं. हल्दी में स्टार्च की मात्रा सर्वाधिक होती हैं. इसके अतिरिक्त इसमें 13.1 प्रतिशत पानी, 6.3 प्रतिशत प्रोटीन, 5.1 प्रतिशत वसा, 69.4 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 2.6 प्रतिशत रेशा एवं 3.5 प्रतिशत खनिज लवण पोषक तत्व पाये जाते हैं.
इसमें वोनाटाइन ऑरेंज लाल तेल 1.3 से 5.5 प्रतिशत पाया जाता हैं.भारत विश्व में सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक देश है. भारत में हल्दी का विभिन्न रूपों में निर्यात जापान, फ्रांस यू.एस.ए., यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, नीदरलैंड, सउदी अरब एवं आस्ट्रेलिया को किया जाता है।
हल्दी के खेती से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी
हल्दी एक मसाला फसल है, जिस क्षेत्र में 1200 से 1400 मि.मी. वर्षा, 100 से 120 वर्षा दिनों में प्राप्त होती
है, वहां पर इसकी अति उत्तम खेती होती है।
समुद्र सतह से 1200 मीटर ऊंचाई तक के क्षेत्रों में यह पैदा की जाती है, परंतु हल्दी की खेती के लिए 450 से 900 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्र उत्तम होते हैं।
हल्दी एक उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की फसल हैं. हल्दी के लिए 30 से 35 डिग्री से.मी. अंकुरण के समय, 25 से 30 डिग्री से.मी. कल्ले निकलने 20 से 30 डिग्री से.मी. प्रकंद बनने तथा 18 से 20 डिग्री से.मी. हल्दी की मोटाई हेतु उत्तम है।
हल्दी का उत्पादन सभी प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता हैं, परंतु जल निकास उत्तम होना चाहिए।
इसका पीएच 5 से 7.5 होना चाहिए. हल्दी की खेती करने के लिए दोमट, जलोढ़, लैटेराइट मिट्टी, जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो, वह इसके लिए अति उत्तम है. पानी भरी मिट्टी इसके लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त होती है।
हल्दी के किस्में
- सी.एल. 326माइडुकुर: –
लीफ स्पाॅट बीमारी की अवरोधक प्रजाति है, लम्बे पंजे वाली, चिकनी, नौ माह में तैयार होती है. उत्पादन क्षमता 200-300 क्विं./हेक्टेयर तथा सूखने पर 19.3 प्रतिशत हल्दी मिलती हैं।
- सी.एल. 327ठेकुरपेन्ट: –
इसके पंजे लम्बे, चिकने एवं चपटे होते हैं. परिपक्वता अवधि 5 माह तथा उत्पादन क्षमता 200-250 क्विं./हेक्टर सूखने पर 21.8 प्रतिशत हल्दी प्राप्त होती हैं।
- कस्तूरी: –
यह शीघ्र (7 माह) में तैयार होती हैं. इसके पंजे पतले एवं सुगन्धित होते हैं. उत्पादन 150-200 क्विं./
हेक्टेयर 25 प्रतिशत सूखी हल्दी मिलती हैं।
- पीतांबरा: –
यह राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित है, यह अधिक उत्पादन देती है. आई.सी.ए.आर. द्वारा स्थापित हाई अल्टीट्यूट अनुसंधान केन्द्र पोटांगी (उड़ीसा) द्वारा उत्पादन की गई प्रजातियां निम्नलिखित हैं जो म.प्र. के लिए उपयुक्त हैं।
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