Sweet Potato Cultivation :शकरकंद भारत में पाए जाने वाला एक कंद प्रजाति का फल है। शकरकंद को मीठा आलू भी कहा जाता हैं। शकरकंद जिसकी गिनती कंद वर्गीय फसलों की श्रेणी में होती हैं। Sweet Potato Cultivation का पौधा जमीन के अंदर और बहार दोनों जगह विकास करता हैं। जमीन के बाहर इसका पौधा बेल के रूप में फैलकर विकास करता हैं। शकरकंद का सबसे ज्यादा उत्पादन चीन में किया जाता हैं। जिसका इस्तेमाल खाने में कई तरह से किया जाता हैं। शकरकंद का इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जाता हैं। इसके अलावा बड़ी मात्रा में लोग इन्हें भुनकर और उबालकर भी खाते हैं। भुनकर खाने पर इसका स्वाद काफी लजीज होता हैं।
शकरकंद की खेती
शकरकंद की खेती के लिए, खेत को अच्छी तरह से तैयार करें| मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए, बिजाई से पहले खेत की 3-4 बार जोताई करें, फिर सुहागा फेरें। खेत को नदीन मुक्त रखना चाहिए।
शकरकंद लिए जलवायु
शकरकंद की खेती के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी गई है। इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 21 से 27 डिग्री के मध्य होना चाहिए. इसके लिए 75 से 150 सेंटीमीटर बारिस ठीक मानी गई है।
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शकरकंद की बुवाई
उचित पैदावार के लिए, गांठों को नर्सरी बैडों पर जनवरी से फरवरी के महीने में बोयें और अप्रैल से जुलाई के महीने में बेलों की बुवाई का उचित समय होता है। शकरकंद की फसल को वर्षा ऋतु में जून से अगस्त तथा रबी के मौसम में अक्टूबर से जनवरी में उगाया जा सकता है।
शकरकंद लगाने की विधि
शकरकंद को टीला विधि, मेड़ तथा नाली विधि और समतल विधि से लगा सकते है. शकरकंद लगाने की इन विधियों का अपना अलग महत्व है।
टीला विधि- शकरकंद के लिए टीला विधि का प्रयोग जल भराव वाले क्षेत्रों में किया जाता है।
मेड़ व नाली विधि – इस विधि का उपयोग ढलाव वाली भूमि के लिए किया जाता है।
समतल विधि- यह विधि का उपयोग हर जगह किया जा सकता है लेकिन जड़ जमने के एक महीने बाद मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है।
शकरकंद की सिंचाई
गर्मी के मौसम इसकी रोपाई करने के दौरान इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती हैं। इस दौरान इसके पौधों की रोपाई के तुरंत बाद उन्हें पानी दे देना चाहिए। उसके बाद पौधों के विकास के दौरान इसके पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देते रहना चाहिए।
शकरकंद मुनाफा
रकंद की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 टन के आसपास पाई जाती हैं. जबकि इसका बाज़ार भाव 10 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता हैं। अगर इसका भाव 6 रूपये प्रति किलो किसान भाई को मिलता हैं तो इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से सवा लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं।
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