मध्यप्रदेश मंडी भाव

निर्यात शुरू होते ही गेंहू के दाम पहुंचेंगे सातवे आसमान पर, 4000 रु प्रति क्विंटल बिक सकता है गेहू

निर्यात शुरू होते ही गेंहू के दाम पहुंचेंगे सातवे आसमान पर, 4000 रु प्रति क्विंटल बिक सकता है गेहू रूस यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर पिछले साल गेहूं का निर्यात अधिक हुआ। जिसके कारण सरकार के समर्थन मूल्य की खरीदी पर असर पड़ा। यही कारण है कि सरकार ने पिछले वर्ष मई 2022 में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, हालांकि सरकारी स्तर पर गेहूं का निर्यात होता रहा। लेकिन खुले बाजार से प्रतिबंध निर्यात पर प्रतिबंध रहा, यह प्रतिबंध अब तक बरकरार है वही इसके अलावा गेहूं को वायदा कारोबार से भी बाहर रखा गया है इसके बावजूद गेहूं के भाव इस वर्ष तेज हैं।

क्या चल रहे है आज गेहू के भाव 

आपकी जानकारी के लिए बता दे की सरकारी स्तर पर गेहूं का समर्थन मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित है। किसान समर्थन मूल्य यानी कि 2125 रुपए प्रति क्विंटल पर गेहूं की तेजस, पोषक एवं अन्य कुछ किस्मो को बेच रहे हैं। मंडियों में इन किस्मों के भाव 1900 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल के हैं। वही शरबती, lok-1 लोक वन, पूर्णा, नई वैरायटी पूषा अहिल्या 1634 के भाव 2500 से लगाकर 3000 रुपए प्रति क्विंटल के लगभग हैं।

2023 में गेहूं के भाव 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक हो सकते है 

साथ इस वर्ष पैदावार कम होने के कारण गेहूं के भाव पर भारी असर देखने को मिलेगा। इसी कारण से कई व्यापारी गेहूं का स्टाक करने में लगे हुए हैं। इसी कारण गेहूं के भाव वर्तमान में अधिक हैं बताया जा रहा है कि आने वाले समय में भी गेहूं के भाव अधिक बने रहेंगे। गेहूं कारोबारी बताते हैं कि 2023 में गेहूं के भाव 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक हो सकते हैं। यदि गेंहू के निर्यात को खोला गया तो विशेषज्ञों का दावा है की गेंहू के भाव आसमान छू सकते है और यह लगभग 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक सकते है I क्योकि इस वर्ष विदेशो में मध्यप्रदेश के गेंहू की डिमांड बहुत बढ़ी है I

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भारत में पिछले साल से है निर्यात बंद 

आपको बता दे की गरीबों की सुरक्षा के लिए मुख्य खाद्य पदार्थों की लागत को ध्यान में रखना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सवोच्च प्राथमिकता होगी क्योंकि वह इस साल कई राज्यों में चुनाव और 2024 में आम चुनाव हैं। भारत ने पिछले साल मई में निर्यात रोक दिया था, एक चौंकाने वाला कदम जिसने यूक्रेन में युद्ध के बीच वैश्विक खाद्यान्न की कमी और मुद्रास्फीति की आशंकाओं को हवा दी। इस वर्ष बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि के कारण उत्पादन में कमी आई, जिससे स्थानीय आपूर्ति को लेकर आशंकाएं बढ़ गई।

 

 

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