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इस बड़ी वजह के कारण खुरपका-मुंहपका का टीका लगाने से डर रहे हैं पशुपालक!जाने क्या है वजह1

खुरपका-मुंहपका वो बीमारी है, जिससे हर साल हजारों पशुओं की मौत हो जाती है। पशुओं को जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए देशभर में टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, साथ ही पशुओं की टैगिंग भी की जा रही है, लेकिन पशुपालक टीका लगवाने से मना कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले रमपुरा गाँव में रहने वाली रामदेवी की बछिया को खुरपका-मुंहपका का टीका लगाने के बाद टैगिंग की गई, कुछ दिनों में जिस कान में टैग लगाया गया था उसमें कीड़े लग गए, कान कट गया, जिससे टैग भी गिर गया, अब उनके गाँव के दूसरे लोग टीका लगाने से मना कर रहे हैं।

खुरपका-मुंहपका रोग है काफ़ी जानलेवा

खुरपका-मुंहपका
खुरपका-मुंहपका

देशभर में इस समय पशुओं को जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका से बचाने के लिए टीकाकरण अभियान चल रहा है, साथ ही पशुओं की टैगिंग भी की जा रही है, लेकिन ज्यादातर लोग रामदेवी की तरह ही डर गए हैं और अब टीकाकरण नहीं करा रहे हैं।

सितम्बर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मथुरा में पशुओं में होने वाले खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) और ब्रुसेलोसिस जैसी गंभीर बीमारी को जड़ खत्म करने के लिए राष्ट्रीय पशुरोग नियंत्रण कार्यकम की शुरूआत की थी।

कार्यक्रम के तहत इसी के तहत साल में दो बार पशुओं को एफएमडी के टीके लगाए जाते हैं, इस बार 30 नवंबर तक देश भर के सभी पशुओं को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन ज्यादातर प्रदेशों में पूरी तरह से टीकाकरण नहीं हो पाया है। क्योंकि पशुपालक अपने पशुओं के कान में टैग ही नहीं लगवाना चाह रहे हैं।

टैगिंग के बाद कई पशुओं के कान कट जा रहे हैं। बछिया का कान कटने से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रमपुरा गाँव की रामदेवी गुस्से में कहती हैं, “अगर मेरी बछिया को कुछ हो गया तो थाने में रिपोर्ट करा दूंगी, हमारी बछिया का कान ठीक करें।

कान में बिल्ला लगने के कारण, कान सड़ गया, जान ही नहीं पाए, अब हर दिन इलाज करा रहे हैं।” राम देवी की बछिया, टैग लगाने के बाद जिसका कान कट गया।

सिस्टम की शुरूआत अगस्त, 2019 में की गई थी, जिसके तहत 9.4 करोड़ गाय और भैंसों की टैगिंग होनी थी, इसमें पशुओं को 12 अंक की विशिष्ट पहचान संख्‍या (पशु आधार) दी जाती है। लेकिन सितम्बर 2019 में इसे बढ़ाकर 53.5 करोड़ पशुओं को टैग करने और सभी की अलग पहचान बनाने की शुरूआत की गई।

इसमें गाय-भैंस के साथ ही सुअर व भेड़ बकरियों को भी शामिल करना है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड अंर्तगत पशु उत्पादकता एवं स्वास्थ्य सूचना तंत्र के जरिए पशुओं की टैगिंग की जा रही है।

एनडीडीबी की इस वेबसाइट पर देश भर के पशुओं की जानकारी इकट्ठा करने के लिए टैगिंग की शुरुआत की गई है। पशुपालन विभाग की इस योजना के तहत हर एक पशु की जानकारी इकट्टा करने के उद्देश्य से पशुओं की टैंगिक की शुरूआत की गई है, लेकिन पशुपालक अपने पशुओं की टैगिंग कराने से कतरा रहे हैं।

हर किसी पशुपालक के अपने अलग डर हैं। रामदेवी की तरह ही पंजाब में भी पशुपालकों ने अपने पशुओं की टैगिंग करवाने से मना कर रहे हैं। पंजाब के पशुपालकों का अलग तरह का डर है, उन्हें लग रहा है कि सरकार उनके पशुओं की टैगिंग करके उनसे टैक्स लेगी।

पंजाब में लगभग 60 लाख पशुओं का टीकाकरण होना है, जबकि नवंबर तक अभी सिर्फ 10 लाख पशुओं को एफएमडी का टीका लग पाया है।

पशुपालन विभाग पंजाब के उप निदेशक डॉ. अमरजीत सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “पशुपालक टीका तो लगवा रहे हैं, लेकिन अपने पशुओं की टैगिंग ही नहीं करवाना चाह रहे हैं, पशुपालकों को यही लग रहा है कि टैगिंग करने से उनसे टैक्स लिया जाएगा।

हमारे जिले में 24 नवंबर तक टीकाकरण हुआ है, तब तक लगभग 64 हजार पशुओं का टीकाकरण हुआ है, जबकि हमारे यहां चार लाख से ज्यादा पशु हैं।” राष्ट्रीय पशुरोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत साल 2023-2024 तक 51 करोड़ से अधिक पशुओं के टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया है।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य खुरपका-मुंहपका और ब्रुसेलोसिस को 2024 तक नियंत्रित करना और 2030 तक पूरी तरह समाप्‍त करना है। इसके लिए केंद्र सरकार ने पांच साल के लिए 13,343.00 करोड़ रुपए का बजट भी दिया है।

पंजाब में डेयरी किसानों के लिए काम करने वाले प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन Progressive Dairy Farmers Association से जुड़े सरदार राजपाल सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “हमारे यहां जो टीका लगाने के साथ ही पशुओं की टैगिंग कर रहे हैं, किसान उसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि अगर हमने अपने जानवर को बेच दिया और वो हमारे नाम पर ऐड है, अगर उसने पशु को छोड़ दिया तो जिसके नाम पर पशु है, उसी के ऊपर परेशानी आ जाएगी।

खुरपका-मुंहपका
खुरपका-मुंहपका

इसलिए हमारे यहां पशुपालक आधार कार्ड से लिंक नहीं कराएंगे।” प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन से पंजाब के लगभग सात हजार बड़े पशुपालक जुड़े हुए हैं, जबकि तीस हजार से ज्यादा छोटे पशुपालक भी इस संगठन से जुड़े हुए हैं।

वो आगे कहते हैं, “टैगिंग लगाने के बाद भी पशुओं की बहुत देखभाल करनी होती है, जिससे उसके कान में कीड़े न लगे। क्योंकि कई बार पशुओं में टैगिंग के बाद कान में कीड़े लगने लगते हैं।

बड़े पशुपालक तो इतना ध्यान रख लेते हैं, लेकिन छोटे पशुपालकों में ये परेशानी आती है और अगर एक भी पशु के कान में कोई परेशानी हुई तो किसान डर जाता है। हमारे यहां भी एक ये भी कारण है टैग न लगाने का।”

20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गायों की संख्या 14.51 करोड़ जबकि गोधन (गाय-बैल) की संख्या 18.25 करोड़, भैंसों की संख्या 12.53 करोड़, भेड़ों की संख्या 7.43 करोड़, बकरियों की संख्या 14.89 करोड़ और सुअरों की संख्या 90.6 लाख लाख है। उत्तर प्रदेश के पशुधन प्रसार अधिकारियों के जरिए टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है।

खुरपका-मुंहपका
खुरपका-मुंहपका

पशुपालकों के टैगिंग और टीकाकरण कराने से मना करने के बारे में पशुधन प्रसार अधिकारी पशुधन प्रसार अधिकारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष नितिन सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “यूपी में टीकाकरण और टैगिंग दोनों की स्थिति खराब हैं, हमारे यहां वैक्सीनेटर और हेल्पर नियुक्त किए गए हैं, जिन्हें वैक्सीनेशन के लिए तीन रुपए और टैगिंग के लिए ढाई रुपए दिए जा रहे हैं।

जबकि यही मानदेय दूसरे राज्यों में ज्यादा दिया जा रहा है। भारत सरकार ने मिनिमम तीन रुपए टीकाकरण के और दो रुपए टैगिंग के लेकिन, यूपी में उतना ही मिल रहा है। इस वजह से लोग सपोर्ट नहीं कर रहे हैं, कई लोग तो बीच में छोड़कर चले गए।”

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