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हाइड्रोपोनिक्स विधि क्या है ,उसकी पूरी जानकारी।

हाइड्रोपोनिक्स विधि क्या है ,उसकी पूरी जानकारी।

आपको बता दें तो यह एक तरीके की आधुनिक तकनीकी है जिसके द्वारा अब अपने लिए फल और सब्जी की उपज कर सकते हैं।

हाइड्रोपोनिक्स विधि क्या है ,उसकी पूरी जानकारी।
हाइड्रोपोनिक्स विधि क्या है ,उसकी पूरी जानकारी।

आपको बता दें तो आजकल जिस तरीके से किचन गार्डन का प्रचलन चल उठा है उसमें यह हाइड्रोपोनिक तकनीक जो है वह बहुत ही लाभकारी है। आपको बता दे तो आप इस तकनीक के जरिए आसानी से खेती कर सकती हैं घर बैठे।

हाइड्रोपोनिक तकनीक एक तरीके से उन लोगों के लिए है जो कि आराम से खेती करने का शौक रखते हैं जिन्हें ज्यादा झंझट से लेना देना नहीं है लेकिन उनको खेती करने का काफी ज्यादा मन है और उनका खेती करने में रुचि है।

हाइड्रोपोनिक तकनीक क्या है

आपको बता दें कि, केवल पानी में या बालू अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक कहते हैं।

हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘हाइड्रो’ (Hydro) तथा ‘पोनोस (Ponos) से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब है पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य।

हाइड्रोपोनिक तकनीक में किस-किस चीज की आवश्यकता है।

इसमें सिर्फ सूरज की रोशनी की ज़रूरत पड़ती है। इसके अलावा पिंडफ्रेश लोगों के घरों में जाकर इस उपकरण को सेट करने में भी मदद करती है।
आपको बता दें कि ,

अगर किसी के घर में यह उपकरण ऐसी जगह लगा है जहां सूरज की रोशनी सीधे नहीं पहुंच सकती तो हम उसके लिए कस्टमाइज्ड तरीके से रोशनी की व्यवस्था करते हैं।

कंपनी सिर्फ घरों में ही यह सुविधा नहीं देती बल्कि ऑफिसों को भी पौधों से सजाने का काम करती है।

पिंडफ्रेश कंपनी ने पिंडपाइप नाम से ये उपकरण बनाया है। इसमें एक पाइप में कुछ होल होते हैं जिनमें पौधे लगाए जाते हैं। इस उपकरण को लगाने के लिए 5 फीट लंबी और 2.5 इंच चौड़ी जगह की ज़रूरत पड़ती है।

इसकी लंबाई लगभग 6 फीट होती है। इस उपकरण में एक साथ 48 पौधे उगाए जा सकते हैं। इसकी कीमत 15000 रुपये है। अगर आप पूरे उपकरण के बजाय सिर्फ एक पाइप खरीदना चाहते हैं तो आपको 2500 रुपये खर्च करने होंगे।

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का कई पश्चिमी देशों में फसल उत्पादन के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है।

हमारे देश में भी हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से देश के कई क्षेत्रों में बिना जमीन और मिट्टी के पौधे उगाए जा रहे हैं और फसलें पैदा की जा रही हैं।

राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये विपरीत जलवायु वाली परिस्थितियाँ हैं, उन क्षेत्रों में यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है।

वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर में मक्का, जौ, जई और उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे वाली फसलें उगाने के लिये इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

यहाँ के वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के नियंत्रित वातावरण में इस तकनीक से सेवण घास की पौध तैयार करने में सफलता प्राप्त की है।

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