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Female Electrician: बिहार की सीता देवी करती हैं ‘मर्दों वाले काम’, ऐसे बनीं जिले की पहली महिला इलेक्ट्रिशियन

Female Electrician:महिलाएं मल्टीटास्किंग होती हैं, यानी हर काम को करने में निपुण। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि महिलाओं ने खुद ये बात साबित की है। घर परिवार की जिम्मेदारी उठाकर एक आदर्श गृहणी के तौर पर खुद को साबित करती हैं तो वहीं घर से बाहर निकलने पर नौकरी से लेकर व्यवसाय तक हर क्षेत्र में अपना परचम लहराती हैं। बात करते हैं गृहणियों की, अक्सर आपने अपनी मां, बहन और बेटी को रसोई में खाना बनाते देखा होगा, लेकिन जब बिजली की कोई समस्या होती है तो लोग पापा या भाई को याद करते हैं। हालांकि बिहार में एक ऐसी महिला भी है जो ‘मर्दो वाले काम’ भी करती है, यानी यह गृहणी रसोई में खाना बनाने के साथ खराब पंखा भी ठीक करने में सक्षम है। एक साधारण गृहणी बिहार की इलेक्ट्रिशियन बन गई है। घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए इलेक्ट्रिशियन बनीं और आज अपने काम से उन्होंने क्षेत्र में पहचान बना ली है। चलिए जानते हैं बिहार की महिला इलेक्ट्रिशिय सीता देवी के बारे में।

महिला इलेक्ट्रिशियन सीता देवी का परिचय

बिहार के गया जिले की रहने वाली इलेक्ट्रिशियन सीता देवी क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध हैं। काशीनाथ मोड़ पर सीता देवी की बिजली के उपकरण बनाने की दुकान है। वह इलेक्ट्रिक स्विच से लेकर पंखे और हर तरह के बिजली के खराब उपकरणों को रिपेयर करती हैं।

कैसे बनीं इलेक्ट्रिशियन

15 साल पहले जब सीता देवी की शादी हुई तो वह एक सामान्य गृहणी थीं। उनके पति का नाम जितेंद्र मिस्त्री है, जो पेशे से एक इलेक्ट्रीशियन थे। सीता देवी घर और बच्चों को संभालती थीं। लेकिन पति की सेहत ठीक न होने के कारण सीता देवी दुकान पर पति की मदद के लिए बैठने लगीं।

मजबूरी में सीखा काम

सीता देवी के पति के लीवर में सूजन की समस्या रहती थी। वह काम करने की हालत में नहीं थे। तब घर की रसोई और बच्चे संभालने वाली सीता देवी पति के साथ दुकान जाने लगीं ताकि काम में हाथ बंटाने के साथ ही पति का ख्याल रख सकें। पति ने उन्हें उपकरणों को ठीक करना सिखाया। धीरे धीरे सीता देवी पंखा, ग्राइंडर, लाइट आदि जैसे उपकरण ठीक करने लगीं। दुकान में खराब उपकरण को ठीक कराने के लिए ग्राहक आया करते थे। पति की मदद करने के साथ ही सीमा देवी इस काम में माहिर हो गईं।

बच्चा साथ लेकर जाती थीं काम पर

उन दिनों सीता देवी के बच्चे छोटे थे। उनका बेटा एक साल का ही था, जिसे सीता देवी अपने साथ दुकान लेकर जाती थीं। वह दुकान की पूरी जिम्मेदारी उठाने लगीं। दुकान पर आने वाले खराब उपकरण ठीक करतीं, जरुरत पड़ने पर काम के लिए घर से बाहर जाती तो बेटे को साथ ले जातीं।

हालांकि उनके कई रिश्तेदारों को ये बात पसंद नहीं थी कि वह दुकान पर बैठें, या लोगों के घर जाकर काम करें। उनसे कहा जाता कि यह तो आदमियों का काम है, कोई औरतों वाला काम करो। लेकिन सीता देवी ने सारी बातों को अनसुना किया और परिवार की जिम्मेदारी उठाई। पति ने भी उनका साथ दिया।

इस तरह सीता देवी जिले की पहली महिला इलेक्ट्रिशियन बन गईं। भले ही उन्होंने ये काम मजबूरी में सीखा, लेकिन आ वह इस काम से हर दिन एक-डेढ़ हजार रुपये तक कमा लेती हैं। अब उनके बच्चे भी दुकान के काम में हाथ बंटाने लगे हैं।

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