मानसून के देरी से चलते Soyabean की यह 5 उन्नत किस्मो की करे बुआई ,कम समय में होगा रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन भारत में सोयाबीन (Soyabean) की बुवाई बहुत बड़े क्षेत्रफल में की जाती हैं। इसकी बुवाई मानसून के आते ही शुरू हो जाती है। सोयाबीन की बुवाई से पहले जान लेना चाहिए कि सबसे अच्छी किस्म कौन-सी हैं। किसान इस बार मानसून में देरी से सोयाबीन की उन्नत किस्मों की बुवाई करके भी कम समय में अधिक पैदावार पा सकते हैं। हम आपको सोयाबीन की अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्मों की जानकारी दे रहे हैं, जिसे जानकर किसान भाई अनुकूल किस्म का चयन करके समय पर सोयाबीन की बुवाई कर सकें। भारत में सबसे ज्यादा सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में होती है। मध्य प्रदेश का सोयाबीन उत्पादन में 45 प्रतिशत है।
Pratap Soya -45 सोयाबीन वैराइटी
(आरकेएस-45 सोयाबीन (Soyabean) की वैरायटी की बढ़वार काफी अच्छी होती है। इसके फूल सफेद होते हैं। इसके बीज का रंग पीला होता और भूरे रंग का हिलम होता है। यह किस्म राजस्थान के लिए अनुशंसित है। यह किस्म 90-98 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म पानी की कमी को कुछ हद तक सहन कर सकती है। वहीं सिंचित क्षेत्र में उर्वरकों के साथ अच्छी प्रतिक्रिया देती है। यह किस्त यलो मोजेक वाइरस के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी है।
मानसून के देरी से चलते Soyabean की यह 5 उन्नत किस्मो की करे बुआई ,कम समय में होगा रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन
BS – 6124
इस सोयाबीन (Soyabean) किस्म के बारे में बताये तो इस किस्म की बुवाई के लिए बीज की मात्रा 35-40 किलों बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होती है। बात करें इसके उत्पादन की तो इस किस्म से एक हेक्टेयर में करीब 20-25 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म से सोयाबीन की फसल 90-95 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म में फूल बैंगनी रंग के और पत्ते लंबे होते हैं।
JS – 2069
जेएस 2069 किस्म की सोयाबीन (Soyabean) की बुवाई का उपयुक्त समय 15 जून से 22 जून तक कर सकते है. इस किस्म की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 40 किलो बीज की आवश्यकता होती है. इस किस्म से एक हेक्टेयर में लगभग 22-26 क्विंटल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. इस किस्म को तैयार होने में 85-86 दिनों का समय लगता है।
MACS – 1407
आपको सोयाबीन(Soyabean) की इस किस्म के बारे में देखा जाये तो सोयाबीन की एमएसीएस 1407 नाम की यह नई विकसित किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 30 से 39 क्विंटल तक पैदावार देती है और यह गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे प्रमुख कीट-पतंगों के लिए प्रतिरोधी किस्म है. यह इस सोयाबीन के किस्म की विशेषताएं है.
मानसून के देरी से चलते Soyabean की यह 5 उन्नत किस्मो की करे बुआई ,कम समय में होगा रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन
KDS – 726
फुले संगम केडीएस 726 यह किस्म 2016 में महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय महाराष्ट्र द्वारा अनुशंसित सोयाबीन (Soyabean) की किस्म है। इसका पौधा अन्य पौधों की तुलना में बड़ा और मजबूत होता है। 3 दानों की एक फली होती है, इसमें 350 फली तक लगते हैं। इसका दाना काफी मोटा होता है, जिससे उत्पादन में इसका दोहरा लाभ होगा। यह किस्म ज्यादातर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में लगाई जाती है। इस किस्म की सिफारिश तंबरा रोग के प्रति कम संवेदनशील होने के साथ-साथ पत्ती धब्बे और पपड़ी के लिए अपेक्षाकृत प्रतिरोधी होने के कारण की जाती है। यह किस्म पत्ती खाने वाले लार्वा के प्रति कुछ हद तक सहिष्णु है, लेकिन तंबरा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। सोयाबीन की इस किस्म की परिपक्वता अवधि 100 से 105 दिनों की होती है। फुले संगम केडीएस 726 की उच्च तकनीक की खेती पर इस किस्म का उत्पादन 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देखी गई है। इस किस्म की तेल सामग्री 18.42 प्रतिशत है।