सोयाबीन soybeans की खेती खास तौर पे खरीफ के मौसम में ही की जाती है। सोयाबीन एक ऐसा फसल है जिसका उपयोग तिलहन और दलहन दोनों रूप में ही इसका उपज किया जाता है।
सोयाबीन soybeans का उपयोग बहुत तरीके से किया जाता है । सोयाबीन की सबसे बड़ी खासियत क्या है कि उसके अंदर बहुत ही ज्यादा प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। अगर इसकी फसल को अच्छी तरीके से उगाया जाए तो यह बहुत ही अच्छा और बहुत ही ज्यादा मुनाफा देने वाला फसल है।
कहते हैं ना कि हर एक चीजों के साथ अच्छी और बुरी दोनों ही प्रवृत्ति होती है लेकिन बहुत बार प्राकृतिक आपदा या किसी रोग के हो जाने से फसल को बहुत ही ज्यादा हानि पहुँचता है। अगर आपने समय रहते सतर्कता नहीं बरती तो आपको बहुत ही कम पैदावार और मुनाफा प्राप्त हो सकते हैं।
सोयाबीन soybeans
तो आइए आज हम बात करेंगे कि आखिरकार हम किस तरीके से सोयाबीन में होने वाले रोगों को रोके, और अपने पैदावार को नुकसान होने से बचाएं।
चूर्णिल आसिता
सोयाबीन soybeans के फसल में लगने वाले इस रोग को पाउडर मिल्डयू, भ-भूतिया और छाछया जैसे नामों से विख्यात है। और यह चीज आपके फसल पर फफूंद की वजह से फैलता है.
हर सोयाबीन के पौधों पर यह रोग मौसम में अधिक नमी के रहने पर बने फैलता है. इस रोग के लगने के तुरंत बाद आपको फसल की पत्तियों पर सफ़ेद भूरे रंग के धब्बे नजर आने लगते है।
जैसे-जैसे इस रोग में वृद्धि होती है वैसे वैसे फसल पर आपको इन धब्बों का आकार बड़ा होते हुए नजर आने लगेगा । और इस रोग की वजह से सोयाबीन की पूरी पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा होने लग जाता है।
इसकी वजह से सोयाबीन की फसलों में प्रकाश संश्लेषण का प्रवेश होना बंद हो जाता है । और सोयाबीन की फसलों की बढ़ने की गति रुक जाती है. और देखते ही देखते इस रोग की वजह से कुछ समय बाद पूरा पौधा खत्म हो जाता है।
रोकथाम
अगर आप अपनी फसल को इस रोग से बचाना चाहते हैं तो उसके लिए आप प्रमाणित और रोगरोधी किस्म के बीजों को ही उपज के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
सोयाबीन के बीजों को खेत में डालने से पहले उन्हें अच्छे तरीके से कार्बेन्डाजिम, थीरम या कैप्टान दवा से उपचारित कर लेना चाहिए.
खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर घुलनशील गंधक या कार्बेन्डाजिम की सामान्य मात्रा का छिडकाव पौधों पर अवश्य करना चाहिए.
इसके अलावा रोग से गिरे हुए पौधे को तुरंत उखाड़कर बर्बाद कर देना चाहिए।
ग्रीन सेमी लूपर
सोयाबीन के फसल में ग्रीन सेमी लूपर रोग कीट की वजह से फैलता है. आगे आने वाले किस्म के फसल पर इस रोग का प्रभाव फूल बनने के दौरान बहुत ज्यादा नजर आता है।
इस रोग के कीट की सुंडी फूलों के खिलने से पहले उसकी कलियों को ही खा जाती है. और इसके वजह से फसल पर फिर से फूल और फली बनने में लंबा समय लगता है। साथ ही फलियों में दाने भी बहुत कम बनते है।
रोकथाम
सोयाबीन की फसलों पर इस रोग की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्म के पौधों को उगाना चाहिए।
खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर क्यूनालफास 25 ई.सी. की डेढ़ लीटर मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों पर अवश्य छिडकना चाहिए।
जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव सोयाबीन की फसलों पर अवश्य करना चाहिए.
सफेद मक्खी
सोयाबीन के फसलों पर सफेद मक्खी रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों की निचली हिस्से पर अक्सर देखने को मिलता है। जो की सोयाबीन की फसलों पर कीट की वजह से फैलता है।
इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों की निचले हिस्से पर रहकर पत्तियों का रस जो है वह पूरी तरीके से चूसते हैं। जिसके वजह से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। और रोग के बढ़ने से पत्तियां पौधे से अलग होकर गिर जाती हैं। जिसकी वजह से फसल में बढ़ने की क्षमता पूरी तरीके से खत्म हो जाती है।
रोकथाम
सोयाबीन soybeans की फसलों के लिए इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
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