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Cotton Bhav: 2022 के अंत तक कॉटन के दामों में गिरावट , अभी जानें दामों मे गिरावट के कई मुख्य कारण

Cotton Bhav

किसान समाचार – अगर मौजूदा हालत को देखा जाए देशी और विदेशी बाजार में कॉटन की कीमतों (Cotton Price) में तेजी का दौर अब धीरे धीरे खत्म होता हुआ दिखाई पड़ रहा है. वर्ष 2022 के अंत तक घरेलू बाजार में कॉटन का दाम 30 हजार रुपये प्रति गांठ (1 गांठ में 170 किलो) के नीचे भी लुढ़क सकता है. फिलहाल इसका भाव 45,500 रुपये के आसपास ही चल रहा है. वहीं विदेशी बाजार यानी आईसीई (इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज) पर कॉटन दिसंबर वायदा का दाम भी गिरकर नीचे में 80 सेंट प्रति पाउंड के स्तर आने की आशंका दिखाई पड़ रही है. ओरिगो ई-मंडी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर (कमोडिटी रिसर्च) तरुण सत्संगी के अनुसार मांग में भारी कमी, डॉलर में मजबूती , वैश्विक मंदी की आशंका और आगामी फसल अच्छी रहने की संभावना से कीमतों में गिरावट का रुझान लगातार बना हुआ है. वहीं आने वाले महीनों के दौरान भी कीमतों पर दबाव की आशंका भी बरकरार है.

तरुण सत्संगी का कहना है कि हमने जून की शुरुआत में अनुमान जारी किया था कि कॉटन का दाम 41,800 रुपये-40,000 रुपये तक नीचे गिर सकता है. वहीं अब हमने इसे संशोधित करते हुए इस साल के आखिर तक 30 हजार रुपये के नीचे रहने का अनुमान भी जारी किया है. भारत में कॉटन के भाव में 50,330 रुपये प्रति गांठ की रिकॉर्ड ऊंचाई से लगभग 18 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. उनका कहना है कि मई 2022 की शुरुआत तक कॉटन में ढाई साल की तेजी का दौर खत्म सा हो चुका था और बीते 2 महीने से भी कम समय में विदेशी बाजार में कॉटन का भाव साढ़े 11 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई 155.95 सेंट प्रति पाउंड से 37 फीसदी से ज्यादा तक टूट चुका है.

कॉटन की कीमतों में गिरावट की मुख्य वजह

सत्संगी के अनुसार ऊंचे भाव और सप्लाई में कमी की वजह से कॉटन की मांग (Cotton Demand) में कुछ कमी देखने को मिल रही है. उन्होंने कहा कि कॉटन की कीमतों में हालिया गिरावट का संबंध अमेरिका और वैश्विक शेयर बाजारों में हुए नुकसान के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था की दिशा को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं और जिसका असर कमोडिटी बाजार पर भी अब पड़ रहा है. इसके अलावा कॉटन में कमजोरी के लिए चीन में लॉकडाउन को भी कुछ हद तक जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

दुनिया में कॉटन का सबसे बड़ा आयातक है चीन

चीन दुनिया में कॉटन का सबसे बड़ा आयातक देश है और वैश्विक आयात में चीन की लगभग 21 फीसदी हिस्सेदारी है. उनका कहना है कि वैश्विक स्तर पर अगर मंदी की आशंका और गहराती है तो अमेरिकी डॉलर में अब भयंकर तेजी का खतरा बढ़ जाएगा, क्योंकि ऐसे में ज्यादा से ज्यादा फंड डॉलर जैसे सुरक्षित निवेश की ओर ही शिफ्ट हो जाएगा.

इस वर्ष कॉटन का निर्यात घटा

2021-22 के फसल वर्ष में मई 2022 तक भारत देश से लगभग 3.7-3.8 मिलियन गांठ कॉटन का निर्यात (Cotton Export) किया जा चुका है, जबकि एक साल पहले की समान समय अवधि में 5.8 मिलियन गांठ कॉटन का निर्यात किया गया था. कॉटन की ऊंची कीमतों ने निर्यात को आर्थिक रूप से कुछ अव्यवहारिक बना दिया है. तरुण सत्संगी का कहना है कि इस साल भारत देश का कॉटन निर्यात 4.0-4.2 मिलियन गांठ तक सीमित रह सकता है, जबकि 2020-21 में 7.5 मिलियन गांठ कॉटन निर्यात देश से हुआ था.

इस बार कॉटन का आयात बढ़ने का अनुमान

शुल्क मुक्त आयात (Duty Free Import) से सितंबर के अंत तक 15-16 लाख गांठ की राहत भी मिलने का अनुमान है. भारतीय व्यापारियों और मिलों ने शुल्क हटाने के बाद लगभग 5,00,000 गांठ कॉटन की खरीदारी की है. 2021-22 के लिए कुल आयात अब 8,00,000 तक गांठ हो गया है. सितंबर के अंत तक अन्य संभावित 8,00,000 गांठ के आयात के साथ 2021-22 के लिए कुल आयात 16 लाख गांठ तक हो जाएगा. कॉटन के अधिकतर आयात अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम अफ्रीकी देशों से हैं.

देश में कपास की बुआई का रकबा बढ़ने का अनुमान

चालू खरीफ सीजन में देश में कॉटन का रकबा 4 से 6 फीसदी बढ़कर 125 लाख हेक्टेयर तक होने का अनुमान है. क्योंकि पिछले दो साल से किसानों को कपास में अच्छा पैसा तो मिला है. सोयाबीन की कीमतों (Soybean price) में आई हालिया तेज गिरावट किसानों को कपास की बुआई करने के विकल्प का चुनाव करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम भी करेगी. मौसम विभाग के ताजा अपेडट के अनुसार मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ, तेलंगाना, गुजरात क्षेत्र, सौराष्ट्र एवं कच्छ और कर्नाटक में 30 जून 2022 तक अच्छी बारिश भी होगी. उनका कहना है कि यह बारिश कपास की बुआई के लिए बहुत अच्छी है.

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