काला नमक फसल की खेती से मदद मिलेगी किसानों को..
काला नमक फसल की खेती से मदद मिलेगी किसानों को..
खेती आज एक कारोबार का रूप ले चुका है। खेती करके किसान धनवान बन सकते है। बस उन्हें जरूरत है एक अच्छी और सम्पूर्ण जानकारी की । उस धान का नाम है काला नमक।
जिसके बारे में कहा जाता है कि सिद्धार्थनगर के बजहा गावं में यह गौतम बुद्ध के जमाने से पैदा हो रहा है । इसकी खासियत यह है कि इसे एक घर मे बनाया जाता है तो इसकी सुगन्ध पूरे मोहल्ले में महसूस होती है ।
कालानमक फसल देश में इतने प्रचलित होने के बाउजूद भी किसान इस फसल की खेती नहीं करते है ।
लेकिन अब कालानमक की खेती करके किसान अपने खेतों में उत्पादन को लगभग दोगुना कर सकते है ।
काला नमक फसल किसानों के लिए क्यों है फायदेमंद
अब कालानमक की खेती करके किसान अपने खेतों में उत्पादन को लगभग दोगुना कर सकते हैं. कालानमक की खेती अपनी विशेष सुगंध और पोषक तत्व के कारण जानी जाती है. यह फसल देशभर के किसानों को मालामाल करने वाली है.
बता दें कि काला नमक की खेती में तकरीबन 30 से 40 हजार रूपए खर्च आता है. इस फसल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल होता है. लेकिन कालानमक की खेती से प्रति हेक्टेयर 45 से 50 क्विंटल तक का उत्पादन होगा. इसकी लागत भी उतनी ही लगती है.
क्या कहते है एक्सपर्ट्स
जाने-माने कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी ने काला नमक चावल को विश्व स्तर पर पहचान दिलवाई है. वो यूनाइटेड नेशन के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रह चुके हैं. प्रो. चौधरी के मुताबिक ब्रिटिश शासन के दौरान काला नमक एक्सपोर्ट होता रहा है.
लेकिन आजादी के बाद पहली बार 2019-20 में 200 क्विंटल सिंगापुर गया. वहां के लोगों को पसंद आया. फिर यहां 300 क्विंटल भेजा गया. दुबई में 20 क्विंटल और जर्मनी में एक क्विंटल का एक्सपोर्ट किया गया है. इसका दाम 300 रुपये किलो मिला है.
यह अभी शुरुआत है. अब बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन की तरह काला नमक एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन बनाने की जरूरत है. ताकि उसकी गुणवत्ता की भी जांच पड़ताल हो सके. एक्सपोर्ट के लिए प्रमोशन हो.
जीआई टैग प्राप्त 11 जिलों के अलावा कोई और काला नमक को न बेच सके. अब तक सिर्फ देश के बाहर बासमती की ही ब्रांडिंग है ।
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