चुकंदर की खेती कैसे करें।
Beet Farmingआपको बता दें तो चुकंदर की खेती एक ऐसी खेती है जो कि हर राज्य में हर शहर में की जाती है।
चुकंदर का उपयोग हर एक इंसान के जीवन में है क्योंकि रोजमर्रा के जीवन में हम चुकंदर खाते हैं क्योंकि हमें अपने आप को स्वस्थ और अपने अंदर के बॉडी में खून की कमी को पूरा करना होता है। इसमें हमारी मदद चुकंदर बहुत ही बेहतर तरीके से करता है।
भारत में चुकंदर का उपयोग सलाद और ज्यूस बनाने में सबसे ज्यादा किया जाता है. वहीं दुनिया के अन्य देशों में चुकंदर का सबसे ज्यादा उपयोग शक्कर (चीनी ) बनाने में किया जाता है।
उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले की गढ़ मुक्तेश्वर तहसील के खिलवाई गांव के सुधीर त्यागी चुकंदर की खेती सफल खेती कर रहे हैं।
उनका कहना है कि चुकंदर का ज्यूस लोग सर्दी के दिनों में पसंद करते हैं. वहीं कुछ लोग चुकंदर को डॉक्टर की सलाह पर हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए करते हैं।
वहीं इसकी सब्जी और हलवा भी बनता है. चुकंदर के पत्तों की भुजिया काफी टेस्टी होती है. तो आइए जानते हैं सुधीर त्यागी से कि चुकंदर की खेती कैसे करें? और इससे कितना मुनाफा होता है-
चुकंदर की खेती के लिए बुवाई (Sowing for Beet Farming)-
आपको बता दें कि, चुकंदर की फसल अधिक बारिश में खराब हो जाती है. इसमें गलन की समस्या आ जाती है. इसलिए इसकी बुवाई बारिश निकलने के बाद 10 सितंबर से 15 मार्च के बीच में करना चाहिए.
यह 120 की दिन की फसल होती है. 90 दिन में इसकी हार्वेस्टिंग शुरू हो जाती है. ऐसे में दिसंबर अंत और जनवरी के पहले सप्ताह में इसकी स्टैंडर्ड क्वालिटी खोदकर मंडी में बेच दी जाती है. इसकी हार्वेस्टिंग एक साथ नहीं की जाती है।
चुकंदर की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of Field for Beet Cultivation)-
उन्होंने बताया कि चुकंदर की खेती के लिए खेत की कोई खास तैयारी नहीं करना पड़ती है. इसके लिए कल्टीवेटर और रोटीवेटर से 2-3 जुताई की जाती है। इसमें एक बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि मिट्टी को महीन बनाना बेहद आवश्यक है. इसलिए अच्छे से जुताई करने के बाद ही फसल की बुवाई की जाती है।
चुकंदर की खेती के लिए बुवाई की विधि (Method of Sowing for Beet Cultivation)-
चुकंदर की फसल की दो विधि से बुवाई की जाती है. पहली छिटकवा विधि और दूसरी मेड़ विधि. सुधीर का कहना है कि छिटकवा विधि में बीज की मात्रा अधिक डालना पड़ती है वहीं पैदावार भी कम होती है. जबकि मेड़ विधि से अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
छिटकवा विधि– इस विधि में क्यारी बनाकर बीज को फेंका जाता है. इसके लिए प्रति एकड़ 3.5 किलो से 4 किलो बीज लगता है. वहीं पैदावार अच्छी होती है.
मेड़ विधि- 10 इंच की दूरी पर मेड़ बनाई जाती है. जो लगभग एक फीट ऊँची होती है. जिस पर एक या दो कतारों में चुकंदर का बीज लगाया जाता है. पौधे से पौधे की दूरी 3 इंच रखी जाती है. वहीं बीज की बुवाई आधे सेंटीमीटर की गहराई पर होती है. ज्यादा गहराई में बीज डालने पर खराब हो जाता है.
चुकंदर की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for Beet Farming)-
बीज रोपाई के बाद पहली सिंचाई की जाती है. सुधीर का कहना कि पहली सिंचाई काफी सावधानीपूर्वक करना चाहिए. इससे केवल क्यारियों को नमी देना होती है. इसलिए हल्की सिंचाई की जाती है. ताकि बीजों का अंकुरण अच्छी तरह से हो सके. इसके बाद आवश्यकतानुसार पानी देना पड़ता है।
चुकंदर की खेती से लाभ (Benefits of beetroot farming)
चुकंदर की अलग अलग किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन उपज 150 से 300 क्विंटल होती है. किसानों को 20 रूपए से लेकर 50 रूपये प्रति किलो की दर से उनकी उपज की कीमत मिल जाती है. उच्च गुणवत्ता वाले चुकंदर को इससे अधिक दाम पर भी बिक्री की जा सकती है. इस दृष्टि से देखा जाए तो किसान भाई एक हेक्टेयर भूमि में चुकंदर की खेती कर एक बार में दो लाख रुपए से अधिक की आय कर सकते हैं.
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