केले जो है वह फल और सब्जी दोनों समुदाय में आता है। केला ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है। लेकिन इसमे थोड़ा चूकने पर नुकसान की आशंका भी हमेशा रहती है। इसलिए जरुरी है कि अच्छी पौध होने के साथ-साथ फसल सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें।
इसकी खेती के लिए चिनकी बलुई मिट्टी उपयुक्त है, लेकिन इस जमीन का पीएच स्तर 6-7.5 के बीच होना चाहिए, ज्यादा अम्लीय या छारीय मिट्टी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। खेत में जलभराव न होने पाए, यानि पानी निकासी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए, साथी खेत का चुनाव करते वक्त ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हवा का आवागमन बेहतर होना चाहिए, इसलिए पौधे लाइन में लगाने चाहिए।
दूसरी बात है अच्छी पौध। टिशू कल्चर से तैयार पौधों में रोपाई के 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और एक साल में फसल तैयार हो जाती है इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिशू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाएं ।
केले के फसल के लिए उपयुक्त जानकारी
आपको बता दें कि, केले के फसल के लिए गर्मतर और समजलवायु केले की खेती के लिए उपयुक्त है। ये फसल 13-14 डिग्री तापमान से लेकर 40 डिग्री तक आसानी से हो जाती है। लेकिन ज्यादा धूप इसके पौधों को झुलसा सकती है। अच्छी बारिश वाली जगहें भी केले के लिए मुफीद हैं।
मिट्टी में पूरे पोषक तत्व होंगे तो बाहर से रसायनिक खादों का इस्तेमाल कम करना पड़ेगा।
केले की रोपाई के लिए जून-जुलाई सटीक समय है। सेहतमंद पौधों की रोपाई के लिए किसानों को पहले से तैयारी करनी चाहिए। जैसे गड्ढ़ों को जून में ही खोदकर उसमें कंपोस्ट खाद (सड़ी गोबर वाली खाद) भर दें।
केचुआ खाद अगर किसान डाल पाएं तो उसका अलग ही असर दिखता है।
ड्रिप सिस्टम लगा होने पर कीटनाशनकों आदि छिड़काव के लिए भी ज्यादा मशक्कत नहीं करनी होगी। केले को पौधों को कतार में इन्हें लगाते वक्त हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। फॉस्फोरस की आधी मात्रा पौधरोपण के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नत्रजन की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर तथा फरवरी एवं अप्रैल में देनी चाहिए।
- एक हेक्टेयर में करीब 3,700 पुतियों की रोपाई करनी चाहिए।
- केले के बगल में निकलने वाली पुतियों को हटाते रहें।
- बरसात के दिनों में पेड़ों के अगल-बगल मिट्टी चढ़ाते रहें।
- सितम्बर महीने में विगलन रोग तथा अक्टूबर महीने में छीग टोका रोग के बचाव के लिए।
- प्रोपोकोनेजॉल दवाई 1.5 एमएल प्रति लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।
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