आपको बता दें तो भारत में किसानों की ज्यादातर जनसंख्या गेहूं की खेती पर निर्भर है और उनका खेती का मूल आधार भी गेहूं wheat की उपज है। क्योंकि गेहूं wheat की लागत हर एक घर में है जैसे कि किसानों को ज्यादा मुनाफा होने की संभावनाएं रहती है इस खेती में।
फसलों में मौसम की वजह से बहुत सारी कीट और पीली कुंगी लग जाती है। और इसके कारण फसलों में भारी मात्रा में कीड़े लग जाते हैं, जिसकी वजह से फसलों की बर्बादी बढ़ जाती है। उन फसलों में बीमारियों और कीट का प्रकोप पर जाता है।
तो आज हम बात करेंगे गेहूं में लगने वाले सारे रोगो को किस तरीके से जड़ से मिटाया जाए और क्या रोकथाम किया जाए जिससे की फसल ज्यादा से ज्यादा बर्बाद ना हो?
गेहूं wheat में लगने वाले प्रमुख रोग इस प्रकार के हैं –
- पर्ण रतुआ / भूरा रतुआ (Leaf rust / Brown rust )
- धारीदार रतुआ या पीला रतुआ (Striped rust or Yellow rust Stem)
- तना रतुआ या काला रतुआ (Stem rust or black rust)
गेहूं wheat का पर्ण रतुआ / भूरा रतुआ रोग (Leaf rust / Brown rust )
यह पक्सीनिया रिकोंडिटा ट्रिटिसाई नामक कवक से होता है तथा सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है |
आपको बता दे तो, इस रोग की शुरुआत उत्तर भारत की हिमालय तथा दक्षिण भारत की निलगिरी पहाड़ियों से शुरू होता है , और वहां पर जीवित रहता है तथा वहाँ से हवा द्वारा मैदानी क्षेत्रों में फैलकर गेहूं की फसल को संक्रमित करता है |
रोग कि पहचान :-
आपको बता दें तो इस रोग की पहचान यह है कि शुरुआत में इस रोग के लक्षण नारंगी रंग के सुई की नोक के बिन्दुओं के आकार के बिना क्रम के पत्तियों की उपरी सतह पर उभरते हैं , आपको बता दें, नहीं तो बाद में जाकर और घने होकर पूरी पत्ती और पर्ण वृन्तों पर अपने पैर पसार लेते हैं |
बीमार पत्तियां जल्दी सुख जाती है जिससे प्रकाश संश्लेषण में भी कमी होती है और दाना हल्का बनता है |
जैसे- जैसे गर्मी बढ़ती है, इन धब्बों का रंग, पत्तियों की निचली सतह पर काला हो जाता है तथा इसके बाद यह रोग आगे नहीं फैलता है |
इस बीमारी के वजह से गेहूं की उपज में 30 प्रतिशत तक की फसल की क्षति हो सकती है |
उपचार कैसे करें
इस बीमारी को रोकने के लिए आप पहले ही उस फसल में 0.1 प्रतिशत प्रोपीकोनेजोल (टिल्ट 25 ईसी) का एक या दो बार पत्तियों पर छिड़काव करें |
गेहूं का धारीदार रतुआ या पीला रतुआ रोग (Striped rust or Yellow rust Stem)
यह पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नाम के कवक से होता है | इस बीमारी का प्रकोप पत्तियों के उपरी सतह पर पीले रंग की धारियों के रूप में देखने को मिलते हैं, जो कि धीरे–धीरे पूरी पत्तियों को पीला कर देते हैं।
और पीले रंग का पाउडर जमीन पर भी गिरने लगता है , इस इस परिस्थिति में उस गेहूं wheat की फसल को पीला रतुआ कहते हैं| यदि यह रोग कल्ले निकलने वाली अवस्था या इससे पहले आ जाता है तो फसल में बाली नहीं आती है |
यह बिमारी ज्यादातर उत्तरी हिमालय की पहाड़ियों से उत्तरी मैदानी के क्षेत्र में फैलता है |
साथ ही आपको यह बता दे , कि तापमान बढने पर यह बीमारी कम हो जाता है तथा पत्तियों पर पीली धारियां काले रंग की हो जाती है | और मध्य तथा दक्षिणी क्षेत्रों में यह रोग अधिक तापमान की वजह से अपने पैर ज्यादा पसार नहीं पाता है |
उपचार कैसे करें
आपको बता दें कि wheat इस बीमारी के प्रकोप से बचने के लिए आप यह रोकथाम का उपयोग कर उन्नत प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें |
मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें |
गेहूं का तना रतुआ या काला रतुआ रोगतना रतुआ या काला रतुआ (Stem rust or black rust) :-
आपको बता दें कि wheat इस बीमारी का नाम पक्सीनिया ग्रैमिनिस ट्रिटिसाई नामक कवक है | यह बीमारी शुरुआत में निलगिरी तथा पलनी पहाड़ियों से आता है तथा इसका लक्षण दक्षिण तथा मध्य क्षेत्रों में अधिक होता है |
आपको बता दें उत्तरी क्षेत्र में यह फसल पकने के समय पहुँचता है | इसलिए इसका असर नगण्य होता है |
यह रोग अक्सर 20 डिग्री नगण्य सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर फैलता है |
आपको बता दें, तो इस बीमारी के लक्षण तने तथा पत्तियों पर चाकलेट रंग जैसा काला हो जाता है | दक्षिण तथा मध्य क्षेत्रों में जारी की नवीनतम प्रजातियाँ इस रोग के लिए प्रतिरोधी होती है। यह इस हालांकि लोक -1 जैसी प्रजातियों में यह रोग काफी तेजी से फैलता है।
आपके अधिक जानकारी के लिए बता दें कि , यह सर्वप्रथम युगांडा (अफ्रीका) में वर्ष 1999 में पाई गयी लेकिन अभी तक ये फिलहाल भारत में नहीं पाई गई है , फिर भी इसके महत्व को जानते हुए,
देश की प्रमुख प्रजातियों को इस रोग के लिए परीक्षित कर लिया गया है तथा गेहूं wheat की लगभग 20 प्रजातियाँ इसके लिए प्रतिरोधी पाई गयी है | परन्तु देश के लिए अभी ज्यादा चिंता का विषय नहीं है।
उपचार कैसे करें
इस बीमारी कि रोकथाम के लिए बीज को थाइरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बोयें |
उन्नत प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें | इस बीमारी से फसल को बचाने के लिए खड़ी फसल में प्रोपिकोनोजोल 25 ई.सी. 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव डफ अवस्था में करें।
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