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Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार 1

Agriculture :धान की कटाई के बाद किसान उसी खेत में गेहूं की बुवाई करते हैं, अगर इस समय सामान्य के बजाय श्री विधि से गेहूं की बुवाई करते हैं तो लागत कम और पैदावार ढाई से तीन गुना ज्यादा हो सकती है। इसकी खेती की तैयारी भी सामान्य गेहूं की तरीके से ही करते हैं। खेत से खरपतवार और फसल अवशेष निकालकर खेत की तीन-चार बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना सकते हैं।

उसके बाद पाटा चलाकर खेत को बराबर कर जलनिकासी का उचित प्रबंन्ध करें। यदि दीमक की समस्या है तो दीमक नाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए। खेत में पर्याप्त नमी न होने पर बुवाई के पहले एक बार पलेवा करना चाहिए। किसानों को चाहिए खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बना लें। इस तरह से सिंचाई समेत दूसरे कामों आसानी से और कम लागत में हो सकेंगे। ये भी पढ़ें : इस विधि से सरसों की बुवाई करने से मिलेगा दोगुना उत्पादन बुवाई का सही समय व उन्नत किस्मों का चयन गेहूं की फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में बुवाई का समय महत्वपूर्ण कारक है। समय से बहुत पहले या बहुत बाद में गेहूं की बुवाई करने से उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार
Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार

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नवम्बर-दिसम्बर के मध्य में बुवाई संपन्न कर लेना चाहिए। गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन अपने क्षेत्र के हिसाब से करना चाहिए। रोगों से बचाने के लिए करें बीजोपचार बुवाई के लिए प्रति एकड़ 10 किलोग्राम बीज का उपयोग करना चाहिए। सबसे पहले 20 लीटर पानी एक बर्तन में गर्म करें। अब चयनित बीजों को इस गर्म पानी में डाल दें। तैरने वाले हल्के बीजों को निकाल दें।

 

Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार

 

अब इस पानी में तीन किलो केचुआ खाद, दो किलो गुड़ और चार लीटर देशी गौमूत्र मिलाकर बीज के साथ अच्छी प्रकार से मिलाएं। अब इस मिश्रण को छह-आठ घंटे के लिए छोड़ दें। बाद में इस मिश्रण कोको जूट के बोरे में भरें, जिससे मिश्रण से अतिरिक्त पानी निकल जाए। इस पानी को एकत्रित कर खेत में छिड़कना लाभप्रद रहता है।

अब बीज और ठोस पदार्थ बावास्टीन 2-3 ग्राम प्रति किग्रा. या ट्राइकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किग्रा. के साथ पीएसबी कल्चर 6 ग्राम और एजोबैक्टर कल्चर 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर नम जूट बैग के ऊपर छाया में फैला देना चाहिए। लगभग 10-12 घंटों में बीज बुवाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस समय तक बीज अंकुरित अवस्था में आ जाते हैं।

इसी अंकुरित बीज को बोने के लिए इस्तेमाल करना है। इस प्रकार से बीजोपचार करने से बीज अंकुरण क्षमता और पौधों के बढ़ने की शक्ति बढ़ती है और पौधे तेजी से विकसित होते हैं, इसे प्राइमिंग भी कहते है। बीज उपचार के कारण जड़ में लगने वाले रोग की रोकथाम हो जाती है।

नवजात पौधे के लिए गौमूत्र प्राकृतिक खाद का काम करता है। ये भी पढ़ें : आलू की तीन नई प्रजातियों से किसानों को होगा फायदा, ये है इनकी खासियत बुवाई की विधि जैसा की पहले बताया गया है की बुवाई के समय मृदा में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है, क्योंकि बुवाई के लिए अंकुरित बीज का प्रयोग किया जाना है। सूखे खेत में पलेवा देकर ही बुवाई करना चाहिए।

बीजों को कतार में 20 सेमी की दूरी में लगाया जाता है। इसके लिए देशी हल या पतली कुदाली की सहायता से 20 सेमी. की दूरी पर तीन से चार सेमी. गहरी नाली बनाते हैं और इसमें 20 सेमी. की दूरी पर एक स्थान पर 2 बीज डालते है। बुवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढक देते हैं। बुवाई के दो-तीन दिन में पौधे निकल आते हैं।

कतार और बीज के मध्य वर्गाकार (20 x 20 सेमी.) की दूरी रखने से प्रत्येक पौधे के लिए पर्याप्त जगह मिलती है, जिससे उनमें आपस में पोषण, नमी व प्रकाश के लिए प्रतियोगिता नहीं होती है। खाद और उर्वरक बगैर जैविक खाद के लगातार रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते रहने से खेत की उपजाऊ क्षमता घटती है।

इसलिए उर्वरकों के साथ जैविक खादों का समन्वित प्रयोग करना टिकाऊ फसलोत्पादन के लिए आवश्यक रहता है। प्रति एकड़ कम्पोस्ट या गोबर खाद (20 कुंतल) या केचुआ खाद (चार कुंतल) में ट्राइकोडर्मा मिलाकर एक दिन के लिए ढककर रखने के पश्चात खेत में मिलाना फायदेमंद रहता है।

आखिरी जुताई के पहले 30-40 किग्रा. डाय अमोनियम फास्फेट (डीएपी) और 15-20 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में फैलाकर अच्छी तरह हल से मिट्टी में मिला देना चाहिए।

पहली सिंचाई के बाद 25-30 किग्रा. यूरिया और 4 कुंतल वर्मी कम्पोस्ट को मिलाकर कतारों में देना चाहिए। तीसरी सिंचाई के पश्चात और गुड़ाई से पहले 15 किग्रा. यूरिया और 10 किग्रा पोटाश उर्वरक प्रति एकड़ की दर से कतारों में देना चाहिए। सिंचाई प्रबंधन बुवाई के समय खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिए, क्योंकि इस विधि में अंकुरित बीज लगाया जाता है।

बुवाई के 15-20 दिनों बाद गेहूं में पहली सिंचाई देना करना जरूरी है, क्योंकि इसके बाद से पौधों में नई जड़ें आनी शुरू हो जाती हैं। भूमि में नमी की कमी से पौधों में नई जड़ें विकसित नहीं हो पाती है, जिससे फसल की वृद्धि रुक सकती है।

बुवाई के 30-35 दिनों बाद दूसरी सिंचाई देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद पौधों में नए कल्ले तेजी से आना शुरू होते हैं और नये कल्ले बनाने के लिए पौधों को पर्याप्त नमी और पोषण की आवश्यकता रहती है।

बुवाई के 40 से 45 दिनों के बाद तीसरी सिंचाई देना चाहिए, इसके बाद से पौधे तेजी से बड़े होते हैं साथ ही नए कल्ले भी आते रहते है। गेहूं की फसल में अगली सिंचाईयां भूमि और जलवायु अनुसार की जानी चाहिए।

गेहूं में फूल आने के समय और दानों में दूध भरने के समय खेत में नमी की कमी नहीं रहनी चाहिए अन्यथा उपज में काफी कमी हो सकती है।

निराई-गुड़ाई सिंचित क्षेत्रों में गेहूं के खेत में लगातार नमी रहने के कारण खरपतवारों का अधिक प्रकोप होता है, जिससे उपज में काफी हानि होती है। इसके अलावा सिंचाई करने के पश्चात मृदा की एक कठोर परत निर्मित हो जाती है, जिससे भूमि में हवा का आवागमन तो अवरुद्ध होता ही है, पोषक तत्व व जल अवशोषण भी कम होता है।

इसलिए खेत में सिंचाई उपरांत निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता है। इसके बाद पहली सिंचाई के 2-3 दिन बाद पतली कुदाली या वीडर से मिट्टी को ढीला करें और खरपतवार भी निकालें।

बुवाई के 20 दिन बाद मिट्टी की सतह के ठीक नीचे क्राउन जड़े निकलती है जो पानी और भोजन की तलाश में चारों तरफ फैलती है.

 

Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार
Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार

 

Agriculture:इस तरीके से करें गेहूं की बुवाई,कम लागत में होगी काफी अच्छी पैदावार

 

यदि मिट्टी सख्त है तो वे ज्यादा फैल नहीं सकती है, जिससे नन्हें पौधों को पर्याप्त भोजन व पानी नहीं मिलता है। गेहूं में दूसरी और तीसरी गुड़ाई क्रमशः 30-35 व 40-45 दिन पर सिंचाई के 2-3 दिन पश्चात करना चाहिए।

गेहूं की श्री विधि से लाभ गेहूं सघनीकरण पद्धति (श्री विधि) से खेती करने पर परंपरागत विधि से प्राप्तप्राप्त 10-20 कुंतल प्रति एकड़ की तुलना में 25 से 50 प्रतिशत अधिक उपज और आमदनी ली जा सकती है।

परंपरागत विधि से गेहूं की खेती करने पर सामान्यत: पर किसानों को 40-60 किग्रा. प्रति एकड़ बीज लगता है, जबकि इस विधि में 10-15 किग्रा. प्रति एकड़ ही बीज लगता है। इस विधि में खाद-पानी की भी बचत होती है।

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