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MSP क्या है न्यूनमत समर्थन मूल्य, किस प्रकार से किया जाता है MSP और क्या होता है इसका फायदा

मोदी सरकार का एकमात्र लक्ष्य है कि किसानों की आमदनी MSP किस प्रकार बढ़ाई जाए। यहां तक कि भाजपा सरकार ने अगले साल यानी कि 2022 तक किसानों की आमदनी किस तरह से दोगुनी कर दी जाए, इस पर उन्होंने एक लक्ष्य तय कर लिया है। साथ ही साथ इस दिशा में मोदी सरकार आगे भी बढ़ रही है।

MSP
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इस सरकार में किसान का जीवन सुख में बनाने के लिए तमाम योजनाएं चला दी हैं। यहां तक कि कृषि सेक्टर के बजट में भी इजाफा किया गया है। साथ ही साथ कई जगहों पर सीधे तौर पर आर्थिक मदद कर रहे हैं।

अगर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बना दिया जाए तो यह भी आमदनी बढ़ाने का सबसे बढ़िया उपाय है। साथ ही साथ सरकार द्वारा पिछले दिनों रबी सीजन के समय में फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की गई थी।

लेकिन जितना हम जानते हैं कि बहुत लोग ऐसे होंगे जो न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP के बारे में नहीं जानते होंगे। ना ही उनको यह पता होगा कि MSP किस आधार पर किया जाता है और इसका क्या लाभ होता है। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP क्या होता है और किसे किस प्रकार तैयार किया जाता है।

क्या होता है MSP?

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर एमएसपी किसानों की फसल की सरकार द्वारा तय की गई कीमत, इसे MSP कहते हैं। जब सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदी है तो वह MSP के आधार पर ही खरीदती है। जो भी जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराया जाता है यानी कि राशन सिस्टम चलता है वह इस एमएसपी इस पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीद लेती है।

भले ही उस फसल के बाजारों में रेट कम हो या ज्यादा लेकिन सरकार उस फसल को तय की गई MSP पर ही खरीदेगी। इसी कारण से किसानों को अपनी तय की गई फसल की कीमत के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है। साथ ही साथ यह भी पता चल जाता है कि उनकी फसल किस दाम पर चल रही है।

यह सीनियर होता है क्योंकि हवाई जहाज हो चाहे सुई सभी कंपनियां अपने सामान की बिक्री की कीमत पहले ही तय कर लेती है कि उसे बाजार में किस कीमत में बेचना है। लेकिन समस्या यह है कि किसान अपनी फसल की कीमत खुद पे नहीं कर पाता है। इसको तय करने के लिए किसानों को सरकार पर निर्भर होना पड़ता है।

हां लेकिन ऐसा नहीं है कि अगर किसी फसल की MSP कीमत तय हो चुकी है तो बाजार में भी वह उसी कीमत पर बिकेगी। आपको वही फसल MSP से कम कीमत या फिर उससे भी ज्यादा कीमत पर बिकती हुई दिखाई पड़ सकती है। और यह अधिकतर मंडियों में होता है जहां पर उसी फसल के दाम ऊपर नीचे हो जाते हैं। लेकिन यह पूरी तरह से किसान पर निर्भर करता है कि वह अपनी फसल सरकार को MSP की कीमत पर बेच दे या फिर उससे कम में आढ़ती को बेच दे।

खाना की कोई भी किसान नहीं चाहता है कि उसकी फसल MSP से कम दामों में बिके। लेकिन जब फसल की बिक्री का समय आ जाता है तो मंडियों में सरकारी खरीद केंद्रों पर फसलों से ट्रक भर जाते हैं और ट्रकों की लंबी लाइन दिखाई देती है। जिस कारण से किसानों को कई दिनों तक अपनी फसल बेचने के लिए इंतजार करना पड़ता है। साथ ही साथ कई बार सरकारी केंद्रों पर कुछ ना कुछ दिक्कत सामने आती ही रहती है। तभी तो बाहर जाने की कमी आ जाती है तो कभी लेबर की कमी आ जाती है। कई बार तो यह होता है कि सरकारी खरीद केंद्र तय समय के अनुसार काफी देर से खुलते हैं।

इन सब के चलते किसानों अपनी फसल कम दामों में आढ़तियों को बेच देते हैं। तो इस कारण से अनुमान लगा सकते हैं कि MSP सरकार की ओर से किसानों की कुछ अनाज वाली फसलों के दामों के लिए गारंटी भी दी जाती है।

किसके द्वारा तय की जाती है MSP

सरकार द्वारा हर वर्ष रबी और खरीफ सीजन की फसलों का MSP घोषित किया जाता है।यह न्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा तय किया जाता है। यह आयोग अधिकतर सभी फसलों के लिए दाम तय करते हैं। लेकिन जो गन्ने का समर्थन मूल्य होता है वह गन्ना आयोग द्वारा ही तय किया जाता है।

CACP द्वारा समय के साथ साथ खेती की लागत के आधार पर फसलों की कीमत तय करती है और उसी के साथ-साथ सुझावों को सरकार के पास भी भेजती है। जिसके बाद सुझावों पर सरकार स्टडी करती है और उसके बाद सरकार द्वारा MSP की घोषणा की जाती है।

इन फसलों की की जाती है MSP

मूल्य आयोग एवं कृषि लागत हर वर्ष खरीफ और रबी सीजन में फसल आने से पहले ही MSP की गणना कर लेते हैं। इन दिनों सरकार द्वारा 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है। जोकि है धान, मक्का, गेहूं, गन्ना, सोयाबीन, कपास, सरसों, सूरजमुखी, जूट, मूंग, मसूर, उड़द, बाजरा, जौ,तुअर, चना आदि जैसी फसलों के दाम तय कर देते हैं। MSP के लिए अनाज की 7 फसलों को, दुल्हन की पांच फसलों को, तिलहन की 7 फसलों को, साथ ही साथ 4 कमर्शियल फसलों को भी शामिल कर लिया जाता है।

चलिए कीमत तय करने का फार्मूला

कृषि सुधार करने के लिए 2004 में स्वामीनाथन आयोग बनाया गया था। जिसके बाद इस आयोग द्वारा MSP तय करने के लिए कई फार्मूले भी सुझाए गए थे। साथ ही साथ डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन समिति ने यह सिफारिश भी की थी कि MSP औसत उत्पादन लागत से करीबन 50% तक अधिक रखना चाहिए।

जिसके बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आई और उसके बाद उसने फसल की लागत का डेढ़ गुना MSP तय करने का एक नया फार्मूला अपनाया।

स्वामीनाथन आयोग कि जो सिफारिश थी उसे मोदी सरकार ने लागू किया। जिसके बाद वर्ष 2018 से 19 के बजट में उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना MSP देने की घोषणा कर दी।

किस तरह खरीदती है सरकार अनाज

जब भी फसलों की बुआई होती है उससे पहले ही उसका MSP तय हो जाता है। कुछ किसान तो ऐसे भी होते हैं जो MSP को देखने के बाद भी फसल की बुआई शुरू करते हैं।

कई बार तो सरकार विभिन्न एजेंसियों जैसे एफसीआई आदि के माध्यम से किसानों से MSP पर अनाज खरीद लेती है। जिसके बाद वह MSP पर खरीद कर अनाजों का बफर स्टॉक बना देते हैं। जब सरकार अनाज को खरीद लेती है तो उसके बाद एफसीआई और नेफेड के गोदामों पर यह अनाज जमा करवा दिया जाता है। इस अनाज का इस्तेमाल गरीब लोगों यानी कि राशन प्रणाली के वितरण के लिए उपयोग में लाया जाता है।

अगर बाजारों में अनाज के ऊपर तेजी आ जाती है तो सरकार इस स्टाफ को निकाल देती है। इससे यह होता है कि बाजारों में कीमत काबू में आ जाती है।

कुछ राज्यों में होता है सब्जियों का MSP

आपको बता दें कि केरल सरकार द्वारा सब्जियों के लिए आधार मूल्य तय करने की घोषणा कर दी गई है। सब्जियों का MSP तय करने वाला केरल सबसे पहला राज्य बन चुका है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि सब्जियों का जो एमएसपी होता है वह उत्पादन लागत से 20 फ़ीसदी अधिक माना जाता है। फिलहाल अभी MSP के दायरे में सिर्फ 16 तरह की सब्जियों को ही शामिल किया गया है।

लेकिन अब हरियाणा भी केरल की तरह ही सब्जियों का एमएसपी तय करने के लिए आगे बढ़ रहा है। इसके लिए किसानों से सुझाव भी लिए जा रहे हैं। इसी के साथ-साथ मंडियो का भी सर्वे हो रहा है।

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