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अभी लीची में लग सकते हैं यह कीट, किसान इस तरह करें उनका नियंत्रण

लीची में लगने वाले कीट एवं उनका नियंत्रणगर्मी के मौसम की शुरुआत हो चुकी है, इस मौसम में आम, लीची एवं अन्य गर्मी में फलने वाले वृक्षों में कीट एवं रोगों के लगने की संभावना बढ़ जाती है। लीची एक उपोष्ण जलवायु का सदाबहार वृक्ष है। इसके फल अपने मनमोहक सुगंध युक्त, स्वाद, आकर्षक रंग एवं पौष्टिक गुणों के लिए मशहूर है। देश में सबसे अच्छे लीची फलों का उत्पादन उत्तर बिहार में होता है। लीची के पौधों एवं फलों को विभिन्न प्रकार के कीट नुकसान पहुँचाते है जिसमें अभी के मौसम में लीची स्टिंक बग, दहिया कीट, लीची माईट तथा लीची फल एवं बीज छेदक बीज प्रमुख है।इन कीटों से लीची की फसल को काफ़ी नुकसान होता है, जिसका असर सीधे इसके उत्पादन और किसानों को आमदनी पर होता है। लीची में फल एवं बीज बेधक कीट का प्रकोप फल पकने के समय वातावरण में आद्रता अधिक होने पर अधिक तीव्र हो जाता है। इन कीटों के नियंत्रण के लिए किसानों को उचित समय पर अपने बाग़ानों की देखभाल करनी चाहिए ताकि समय पर इन कीटों पर नियंत्रण किया जा सके। लीची के बागों में लगने वाले प्रमुख कीट एवं उनका नियंत्रणलीची स्टिंक बगदहिया कीटलीची माईट फल एवं बीज छेदक कीटलीची स्टिंक बगइस कीट के नवजात और व्यस्क दोनों ही पौधों के ज्यादातर कोमल हिस्सों जैसे कि बढ़ती कलियों, पत्तियों, पत्तिकृत, पुष्पक्रम विकसित होते फल, फलों के डंठल और लीची के पेड़ की कोमल शाखाओं से रस चूसकर फसल को प्रभावित करते हैं | रस चूसने के परिणाम स्वरूप फूल और फल काले होकर गिर जाते हैं | इस कीट का प्रभाव विगत वर्षों में पूर्वी चम्पारण के कुछ प्रखंडों में देखा जा रहा है | कीटनाशक छिड़काव का कीट पर त्वरित नॉकडाउन प्रभाव होता है अर्थात शीघ्र मर जाते है | अगर कुछ कीट बाग़ के एक भी पेड़ पर बच गये, तो ये बचे कीट अपनी आबादी जल्दी ही उस स्तर तक बढ़ा लेने में सक्षम होते हैं, जो पुरे बाग़ को संक्रमित करने के लिए पर्याप्त होता है |कीट का नियंत्रणलीची में स्टिंक बग को रोकने के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर द्वारा अनुशंसित 4 प्रकार के रासायनिक कीटनाशक का सुझाव दिया गया है| किसान इसमें से किसी एक को प्रत्येक 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव कर सकते हैं।थियोक्लोप्रिड 21.7% एससी (0.5 मिली./ली.) + लैम्बडासाइहैलोथ्रिन 5% ईसी (1.0 मि.ली./ली.)थियोक्लोप्रिड 21.7% एससी (0.5 मिली./ली.) + फिप्रोनिल 5% एससी (1.5 मि.ली. / ली.)डाइमेथाएट 30% एससी (1.5 मिली./ली.) + लैम्बडासाइहैलोथ्रिन 5% ईसी (1.0 मि.ली./ली.)डाइमेथाएट 30% एससी (1.5 मिली./ली.) + साइपरमेथ्रिन 10% ईसी (1.0 मि.ली. / ली.)दहिया कीट (mealy bug) :-मुख्यतः यह कीट आम के वृक्षों पर हमला करता है पर कभी-कभी इस कीट का प्रकोप लीची पर भी देखा गया है। इस कीट का प्रकोप दिसंबर से मई माह तक पाया जाता है। ये कीट उजले रंग के होते हैं। वयस्क होते कीट अपनी ऊपरी सतह को उजले पाउडर जैसे आवरण से ढक लेते हैं। इस कीट के शिशु एवं मादा लीची के पौधों की कोशिकाओं का रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। यहाँ तक कि ये धीरे-धीरे चलकर नवजात फलों से भी चिपककर रस चूसते हैं। रस चूसने के कारण पेड़ पीलापन लिए हुए और अस्वस्थ दिखते हैं तथा अपरिपक्व अवस्था में पत्तियाँ एवं फल गिरने लगते हैं। कीट का नियंत्रण कैसे करें?जून के महीने में फल तुड़ाई के बाद खेतों की जुताई करने से इस कीट के अंडे सूरज की गर्मी एवं प्राकृतिक दुश्मनों की चपेट में आकर नष्ट हो जाते हैं।पौधे के मुख्य तने के नीचे वाले भाग में 30 से.मी. चौड़ी अल्काथीन या प्लास्टिक की पत्ती लपेट देने एवं उस पर कोई चिकना पदार्थ ग्रीस आदि लगा देने से इस कीट के शिशु पेड़ पर चढ़ नहीं पाते हैं |जड़ से 3 से 4 फीट तक पद भाग को चुने से पुताई करने पर भी इस कीट के नुकसान से बचा जा सकता है |इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. का 1 मि.ली. प्रति 3 लीटर पानी या थायोमेथाक्साग 25%WG / 1 ग्राम / 5 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए |लीची माईट :- इस कीट के व्यस्क एवं शिशु पत्तियों के निचले भाग पर रह कर रस चूसते है, जिसके कारण पत्तियाँ भूरे रंग के मखमल की तरह हो जाती है तथा अंत में सिकुड़ कर सुख जाती है | इसे “इरिनियम” के नाम से जाना जाता है |रोकथाम इस कीट से ग्रस्त पत्तियों एवं टहनियों को काटकर जला देना चाहिए |इस कीट का आक्रमण नजर आने पर सल्फर 80% घु.छु. का 3 ग्राम या डायकोफाँल 18.5% ई.सी. का 3 मि.ली. या इथियाँन 50% ई.सी. का 2 मि.ली. या प्रोपरजाईट 57% ई.सी. का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें |लीची का फल एवं बीज छेदक :- यह लीची का सबसे हानिकारक कीट है जो व्यापक और बहुभक्षी है। एक साल में इस कीट की कई पीढ़ियाँ होती है परंतु फ़सलन के समय की दी पीढ़ी सबसे महत्वपूर्ण है। पहली पीढ़ी में जब लीची के फल लौंग दाने के आकार के होते हैं (अप्रैल प्रथम सप्ताह) तब मादा कीट पुष्पवृन्त के डंठलों पर अंडे देती है जिनसे दो-तीन दिन में पिल्लु (लर्वा) निकलकर विकसित हो रहे फलों में प्रवेश कर बीजों को खाते हैं जिसके कारण फल बाद में गिर जाते हैं। दूसरी पीढ़ी फल परिपक्व होने के 15-20 दिन पहले (मई प्रथम सप्ताह) होती है जब इसके पिल्लु डंठल के पास से फलों में प्रवेश करते हैं एवं फल के बीज और छिलके को खाकर हानि पहुँचाते हैं। पिल्लु गूदे के रंग के होते हैं। फल एवं बीज छेदक कीट की रोकथाम किसान बाग़ की नियमित साफ़–सफाई करें,पहला कीटनाशी छिड़काव-कार्बारिल 50 डवल्यू.पी. 2 ग्राम/ली. (0.1% पानी के घोल) का प्रयोग लीची फल जब मटर के दाने के आकार के हो जाएँ तब करें। डेल्टामेथ्रिन 2.8% ई.सी. का 1 मि.ली. / लीटर पानी या साईपरमेथ्रिन 10 ई.सी. का 1 मि.ली. / लीटर पानी या नोवालुरान 10% ई.सी. का 1.5 मि.ली. / लीटर पानी के घोल बनाकर फलन की अवस्था पर छिडकाव करना चाहिए |

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